
‘‘टिंचरी माईः द अनटोल्ड स्टोरी’’ का ट्रेलर और पोस्टर लांच देहरादून में यहां हुआ लॉन्च, इस पर बनी है पूरी स्टोरी
देहरादून, ब्यूरो। एन एन प्रोडक्शन द्वारा निर्मित हिन्दी फीचर फ़िल्म ‘‘टिंचरी माईः द अनटोल्ड स्टोरी’’ का ट्रेलर तथा पोस्टर लांच अति विशिष्ट अतिथि चन्द्रवीर गायत्री, प्रदेश अध्यक्ष, बीएसपीएस, पुष्कर नेगी, अध्यक्ष, बीएसपीएस, चमोली नवल खाली, गढ़वाल प्रभारी, बीएसपीएस तथा एस पी दुबे, रोश धस्माना, अध्यक्ष गढ़वाल सभा, पंडित उदयशंकर भट्ट, शैलेन्द्र सेमवाल, वरिष्ठ पत्रकार, तोताराम ढौंडियाल जिज्ञासु, निर्माता नवीन नौटियाल तथा इंजी. महेश गुप्ता, लोकेश नवानी और निर्देशक दिनेश उनियाल द्वारा सिद्धार्थ होटल, प्रिंस चौक, देहरादून में दीप प्रज्ज्वलित करके किया गया। इस अवसर पर कई गण्यमान्य लोग तथा फिल्म के कलाकार तथा रंगकर्मी उपस्थित थे। बारिश के बावजूद हाल खचाखच भरा था।
इस अवसर पर नवीन नौटियाल ने अपनी फिल्म निर्माण के सपने के बारे में श्रोताओं को बताया तथा लोकेश नवानी ने बताया कि यह फिल्म टिंचरी माई की कहानी से प्रेरित है लेकिन इसका कथानक नया और समकालीन है। चन्द्रवीर गायत्री, प्रदेश अध्यक्ष, बीएसपीएस ने लोगों से अपील की कि वे अधिक से अधिक संख्या में देखें और उत्तराखण्ड की कहानियों को प्रमोट करें। कार्यक्रम का संचालन रंगकर्मी सुशील पुरोहित ने किया।
यह फ़िल्म उत्तराखण्ड की सुप्रसिद्ध जोगन और सामाजिक आन्दोलनकारी टिंचरी माई के जीवन से प्रेरित है और उनके संघर्ष, त्याग, दुःख, हिम्मत, जुझारूपन और सामाजिक परिवर्तन की लड़ाई की कहानी को आधार बनाकर लिखी गई है। फ़िल्म का कथानक नया और समकालीन है।
मेघा माथुर दिल्ली की एक आधुनिक युवा, एक टीवी चैनल की पत्रकार है। चैनल द्वारा उसे असाधारण काम करने वाली अनजान महिलाओं को खोजकर उन पर आलेख तैयार करने का निर्देश मिला है। उसे टिंचरी माई का नाम सुझाया गया है। इसमें खास रुचि न होते हुए भी वह उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों में जाती है। उसे टिंचरी माई के अनेक दुःखभरे किस्सों व साहस भरे संघर्षों की कहानियां सुनने को मिलती हैं।
टिंचरी माई यानी ठगुली देवी का जन्म पौड़ी गढ़वाल के थलीसैंण ब्लॉक के मंज्यूर गांव में हुआ था। छोटी उम्र में ही उनके सिर से माता-पिता का साया उठ गया था और 13 साल की उम्र में उनका विवाह उनसे 11 साल बड़े गवांणी गांव के गणेशराम नवानी से हो गया। फौजी गणेशराम उन्हें अपने साथ क्वेटा ले गए। वे द्वितीय विश्वयुद्ध में शहीद हो गए, वह अकेली रह गई।
वे अपने दो बच्चों को लेकर गांव लौटीं तो कुछ समय बाद हैजे से उनके दोनों बच्चों की मृत्यु हो गई। परिवार और समाज ने न केवल उनका तिरस्कार किया, बल्कि इतना प्रताड़ित किया कि उन्होंने घर त्याग दिया और उस समय के पिछड़े हुए क्षेत्र कोटद्वार भाबर में आकर जोगन बन गईं।
अब उनके जीवन की नई लड़ाई शुरू हुई, सामाजिक सरोकारों की। टिंचरी माई ने स्वयं शिक्षित न होते हुए भी समाज में अशिक्षा को दूर करने के लिए मोटाढाक कोटद्वार में स्कूल खोला, सिगड्डी गांव में पीने के पानी की लड़ाई लड़ी और टिंचरी जैसी बुराई के खिलाफ़ एक सामाजिक आन्दोलन चलाया। जिसमें उन्होंने टिंचरी बेचने वाले व्यापारी की दुकान को आग लगा दी।
टिंचरी माई को जानने के लिए मेघा का शोध उसे हर दिन नई सच्चाइयों से रूबरू कराता है, तो वह उसमें और गहरे उतरती है। उसे लगता है कि यह सब तो आज भी हो रहा है और टिंचरी माई की लड़ाई आज भी लड़ी जा रही है।
इसे लड़ना आज भी उतना ही प्रासंगिक और ज़रूरी है जितना पिछली सदी में, 1965 से 1977 के कालखण्ड में। उसके साथ वही सब घटता है जो टिंचरी माई के साथ घटा था। माई की कहानी से उसे प्रेरणा और शक्ति मिलती है।
दिल्ली में पली-बढ़ी मेघा भी टिंचरी माई की ही तरह समाज के लिए समर्पित भाव से कार्य करती है। फ़िल्म समाज की पितृसत्तात्मक बुनावट, स्त्री सशक्तीकरण और सामाजिक बदलाव जैसे सवालों को उठाती है।
हिन्दी फ़िल्म: ‘टिंचरी माई: द अनटोल्ड स्टोरी’
प्रोडक्शनः एन0 एन0 प्रोडक्शन
प्रस्तुतकर्ताः डॉ0 पुष्करमोहन नैथानी
लेखकः लोकेश नवानी
निर्देशकः के0 डी0 उनियाल
निर्माताः नवीन नौटियाल, विनय अग्रवाल, महेश गुप्ता
फ़िल्म की शूटिंग बौंठ गांव, टिहरी, चोपता, उखीमठ, धारी देवी, मलेथा, देवप्रयाग संगम, बुग्गावाला, ज्वाल्पाजी, गवांणी तथा देहरादून के झंडाजी महाराज, गांधी पार्क, माल देवता, राजपुर मार्ग तथा अन्य अनेक स्थानों में हुई है। फ़िल्म में 70 से अधिक कलाकारों ने अभिनय किया है। फ़िल्म का निर्देशन युवा निर्देशक के0 डी0 उनियाल ने किया है।
-नवीन नौटियाल, निर्माता